Monday, April 20, 2020

मुश्किल समय के लये कुछ उपाय


आजकल इस सुन्दर देश के लिए कुछ चिंता लगी रहती है | कोरोना वायरस की बिमारी से तो माहौल गंभीर है ही, पर इसकी कोई ज़्यादा चिंता नहीं है | यह तो प्रकृति से ही पैदा हुई है , इसका  इरादा बुरा नहीं, यह निष्पक्ष है |  इसे तो बस हमें झेलना है | चिंता तो यह है , कि कई लोगों में भय, अविश्वास , मलाल और गुस्सा कहीं पल रहा है |  हिंदुस्तान के लोगों में बहुत सूझ बूझ है, और इसलिए सरकार का सभी मुश्किल समय में साथ दे रहे हैं | पर इसके साथ साथ कुछ उलझन का एहसास भी होता है | आजकल हमारे देश में सकारात्मक सोच पर बहुत ज़ोर रहता है | राष्ट्रीय एकता का भी आवाहन होता रहता है |  ऐसी मांग करना अपने में तो गलत नहीं है | पर कहीं ऐसा तो नहीं कि इस चक्कर में हम एक दुसरे का या अपना ही दर्द या डर पहचान नहीं रहे ? इन्हें खुले मन से और सब्र के साथ परखने में हमारा शायद भला ही हो जाए |

पिछले कुछ सालों में हिंदुस्तान काफी बदल चुका है | अब शायद और भी बदलेगा | कई चीज़ें जिन्हे हम आम मानते थे , वे अब शायद न हों, और समाज शायद कई नए रूप ले | पहला का कुछ अच्छा-बुरा जायेगा , और कुछ नया भी अच्छा-बुरा आ सकता है |  दुनिया में भारी बदलाव का फेर चल रहा है , और हमारा देश भी इसमें शामिल है | तरह तरह की ज्योतिष तो यह बातें बोल ही रहे हैं , वैसे भी समय की हवा बता रही है | काम, नौकरी, धर्म के तरीके, रहन सहन, शासन का तरीका, रोज़ाना की ज़िन्दगी, इन सब में बदलाव आ सकते हैं | में एक आम नागरिक हूँ , पर मुझे यह साफ़ मेसूस हो रहा है | कोरोना ने पहले से ही बदलते हुए समय की गति को 'चौथा गेयर' लगा दिया है | राजनैतिक दृष्टि से देखें तो  भा.ज.पा. के सरकार में दूसरी बार आने के बाद से बदलाव बढ़ने ही लगे थे | अच्छे बुरे की अभी के लिए  छोड़िये | जब भा.ज.पा. कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती थी तो अजीब सा लगता था | जैसे यूँहीं शेखी मार रहे हों | अब चाहे कांग्रेस मुक्त किया के नहीं यह ज़रूरी नहीं है , पर इसका मतलब यह तो हो गया है की रोज़ाना की राजनीति, कानून, कौम और धर्म का स्थान, ताकत का मतलब, शांति का स्थान सब बदल रहा है | एक नए समय का फेर है |

हिंदुस्तान की बात एक है | इसके अलावा पूरी दुनिया में भी आर्थिक स्तिति के बदलाव आ रहे हैं | जो देश पहले ताकतवर थे और पूरी दुनिया का दस्तूर बनाते थे अब उनके स्थान थोड़े हिल गए हैं और नयी ताकतें आ रही हैं | ऐसे बदलाव इतिहास में हर ७०-८० सालों में , या १०० सालों में आ ही जाते हैं | पहले से चल रहे बदलाव की हवा यूं ही एकदम तेज़ी पकड़ लेती है |

इस बदलाव में इंसान खुद को कुछ खोया हुआ पा सकता है | क्योंकि यूं तो मैं वही इंसान हूँ जो कल थी, और आसपास देखने में तो सब वैसा ही लगता है, लेकिन हमसे आंखें चुरा कर आस पास सब चीज़ों ने मानों अपनी पहचान बदल ली है | वही शब्द पर माईने अलग, आम लगने वाले कानून पर असर अलग, राजनीती वही पर ताकतें नई, बच्चे वही पर उनकी समस्याएं अलग इत्यादि | नौकरियों के रूप बदल सकते है , जीवन शैली बदल सकती है | यह सब एकदम नहीं होगा | कुछ लोगों के लिए शायद कुछ भी न बदले | पर फिर भी हम एक नई दुनिया में प्रवेश कर रहे होंगे |

मुझे लगता है कई लोग इसका एहसास, अगर खुली तरह से नहीं तो अनजाने में, मन ही मन में कर रहे हैं | इसके कारण शायद कुछ लोगों में उत्सुकता हो, पर कई लोगों में चिंता और असुरक्षा हो सकती है |  ऐसा होना स्वाभाविक है | इसके अलावा मुझे लगता है कि हिंदुस्तान के मुस्लिम परिवारों में ख़ास चिंता हो सकती है | हमारे देश में इस समय एक सच है की हिन्दू समाज एक नई ताकत के साथ अपनी पहचान ढून्ढ रहा है | इतिहास में हर कौम ऐसे वक्त से कभी कभी गुज़रती है | ऐसे समय में हिन्दू समाज में नई ऊर्जा और नया जीवन भी बन सकता है , और साथ में कट्टरपन और छोटी सोच भी | हिन्दू समाज में जागरूकता कुछ हद तक अच्छी बात है | अंग्रेज़ों के राज्य के समय से हिन्दू समाज और इतिहास के बारे में चलती आ रही कुछ धारणाओं पर सवाल उठना स्वाभाविक था| पर सवाल ऐसे उठने चाहिए के इंसानियत और विद्या की सत्यता को ठेस न पहुचाये | भगवान् करे ऐसा हो |

साथ में भारत का मुस्लिम समाज भी कई बदलाव देख रहा है | दुसरे मुस्लिम देशों में हो रहे सामाजिक और धार्मिक मंथन का असर उनपर भी आता है | यही नहीं , भरत का मुस्लिम भी आज मध्यम वर्ग में आता एक समाज है | ऐसे बदलाव समाज में आते हैं और स्वाभाविक हैं | वे क्या रूप लेंगे यह तो वक्त ही बताता है | लेकिन यह तो हमारे हाथ में है की ऐसे समय में हम आपसी भरोसा तोड़ दें या बनाये रखें | आज कोरोना के समय में मुझे मुस्लिम परिवार्रों के लिए चिंता है | कुछ टीवी चैनलों ने इस आपदा के समय में भी उन्हें काफी ठेस पहुंचाने का काम  किया है | उन्हें ही क्यों, किसी भी अक्ल वाले इंसान को बुरा ही लगा होगा | तब्लिकि जमात ने गैर ज़िम्मेदारी तो की ही थी , लेकिन रोज़ाना उसका इतना प्रचार करके लोगों में शक और नफरत बढ़ाई गई है | यह बिमारी विदेश से आये कोई भी लोग फैला सकते थे | और शुरू में किसी को भी अंदेशा नहीं था की यह संक्रमण कितना तेज़ी से फैल रहा है | एक 'चांस' से हुई घटना को साजिश बनाना बेहद दुःख की बात है | और जब इस बिमारी के आने से ठीक पहले नागरिकता कानून से जुडी गर्मी ठंडी भी नहीं हुई थी, और आज भी कई लोग इस कानून से चिंतित हैं, ऐसे में इस तरह का अलगाव फैलाना तो देशद्रोह से कम नहीं | कोरोना बिमारी को आम जनता पूरी तरह से समझती भी नहीं है, उससे भयभीत है, और फिर एक कौम को इसके फैलाव से बार बार जोड़ना (चाहे साफ़ शब्दों में कहा भी न हो ) बहुत गलत है | यह कोई छोटी बात नहीं है | हमारे देश में हिंदु और मुस्लिम लोगों में दूरिया और गलतफैमियाँ वैसे ही बढ़ रही थीं | हमारे देश बड़ी से बड़ी आपदा झेल ले , अगर हमारे मन मलाल से बचे रहें |

कितने दुःख की बात है कि कुछ समृद्ध इलाकों में रहने वाले लोग, दर के मारे कोरोना के मरीज़ों से दूर रहते हैं और उन्हें दुत्कारते हैं | किसी होटल में कहीं संक्रमित लोगों को रखने की कोशिश होती है तो आस पास की कॉलोनी आपत्ति करती हैं | तब तो कोई टीवी वाले इस पर सवाल नहीं करते? फिर देशनिष्ठा का आवाहन कोई क्यों नहीं करता ? दोष देने की भी अपनी ही अजीब राजनीति है |

हिन्दू लोगों के लिए भी सोचने का समय है | आज हमारी प्रथाओं और धरोहर नए रूप से हमारे सामने आ रही है | कई घर्म गुरु , किताबे, वीडियो नै चीज़ें सीखा रहे हैं | इसमें बहुत कुछ अच्छा है | आध्यात्म के रास्ते के बहुत से तरीके और यन्त्र मिल रहे हैं | पर साथ-साथ कहीं एक अभिमान और संकीर्णता भी बढ़ रही है | धर्म के गौरव में हम कहीं अपने  धर्म का मर्म और तत्व न भूल जाएँ , यह हमारे हाथ में है |

सच तो यह है कि आज और आने वाले समय में हमें ही अपने मन और दिमाग को बचा कर रखना होगा | आज देश के हर इंसान के सामने एक सवाल है | यह एक बहुत खुदगर्ज़ सवाल है, अपनी अंतर-आत्मा के हित  के लिए| हम किस भावना के साथ हैं? और क्या हम समय के रुख को पहचानते हुए, समझ और सब्र के साथ आगे बढ़ेंगे ? क्यां हम गंद पर ध्यान देंगे या ऊंचे विचारों पर ? सोशिअल मीडिया पर सब कुछ सुनकर हमेशा बेताब और गर्म रहना क्या ज़रूरी है ? क्या जिस स्वच्छता और एकता का आवाहन हमें सुनाया जाता है, हम उसे अपनी अंतरात्मा से टटोल सकते हैं ? हम सरकार या मीडिया या इश्तेहार या अलग अलग ताकतों के बहकावें में आने के शायद आदि हो चुके थे | अपनी सुनने की आदत कुछ कम हो गयी थी |  कोरोना के समय में हम इसे बदल सकते हैं |  बेकार की बातों के भुलावे से बचना पड़ेगा | बदलते हुए समय में, समुद्र मंथन की कहानी की तरह, पहले तो बहुत विष निकलता है |आने वाले सालों में, हमारे सामने उलझन पैदा करने वाली ताकतें भी आएँगी और नई राह दिखाने वाली, नए विचार, नए दोस्त , नए रिश्ते दिखाने वाली ताकत भी | नया से मतलब यह ज़रूरी नहीं की परंपरा के खिलाफ हो | नया मतलब ऐसा कुछ जो सोच को खोले , जो जीने का कोई सुन्दर सलीका दे | शायद कोई नया काम करने का आईडिया, या कोई नया सफर, या अध्यात्म की तरफ, यह कोई बुरी आदत छोड़ना, या पुरखों की कोई बढ़िया बात पकड़ लेना, या कोई बेकार सी प्रथा छोड़ देना, रोज़ फोन बंद करके टहलने जाना, या यूहीं बैठ जाना | इस समय में बहुत लोगों को यह भी नहीं पता होगा की आगे क्या होगा | कोई नहीं | मुश्किल तो है , पर कोई नहीं | अपने अंदर के जीवन को अगर हम कायम रख लिए, चाहे हम किसी भी समाज के हों, अमीर हो या गरीब हों, तो यकीनन हम यह समय पार कर जाएंगे |

इन सब चिंताओं के साथ साथ प्रकृति की बढ़ती सुंदरता है , जो 'लाकडाउन' ने हमें देखा दी है | एक तरफ समय तेज़ी से बढ़ रहा है , दूसरी तरफ मानो थम गया है | जैसी धरती हमारे दादा-दादियों ने देखी थी उसकी एक झलक मिल रही है | जैसे कोई चुपके से कह रहा हो, दोस्तों , जीना का एक अलग तरीका भी मुमक़िन है |