musafir
Wednesday, June 1, 2011
कविता
कभी यूँ लगता है , कि मन उमड़ रहा है
क्या कुछ नहीं कह डाले प्रवाह जो बह रहा है
पर शब्द सूरज की किरण हैं
पकड़ो तो नहीं हैं
आँख बंद कर लो तो रोम - रोम में वही हैं
कविता का प्रयास ही एक हार लगती है
की हम इतने लीन नहीं हुए की कविता का ख़याल भी नहीं आया
1 comment:
Shivangi
said...
Awwww......I know this feeling... and you've written it with such honesty!
April 4, 2012 at 9:22 PM
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1 comment:
Awwww......I know this feeling... and you've written it with such honesty!
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